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Archive for जुलाई, 2017

भाई साहब आप समाजवादी पार्टी के नेता नितीश कुमार को व्यक्तिवादी और समाजवादी पार्टी के दूसरे नेता लालू प्रसाद यादव को सामंतवादी कह लीजिए। अर्द्ध सत्य है यह। 
मार्क्सवादी समाजवाद का ‘देशी’ मने ‘भारतीय’ संस्करण बोले तो उसे कोई जयप्रकाश नारायण और लोहिया की वैचारिकी वाला समाजवादी पार्टी है। शरद, नितीश, लालू, मुलायम, चंद्रशेखर, जॉर्ज फर्नांडिस, आदि उनके ही संस्करण हैं! 
‘भारतीय’ होने के लिए दो पद महाजरूरी है – 1. जाति, 2. राष्ट्रवाद! या ये दो बौद्धिक आधार हैं जिनसे भारत की पहचान अन्य किसी से भी अलग की जा सकती है।
गाँधी को एडॉप्ट किये बिना राष्ट्रीय होना अभी तक कहाँ संभव है? मोदी को भी गाँधी का सहारा लेना ही हुआ। कोबिंद साहब नेहरू और इंदिरा को तो नकार गए, गाँधी से वह भी मुक्त नहीं हो सके। संघियों से यह समाजवादियों की समानता और भिन्नता का भी यही आधार है। साम्प्रदायिकता के आते ही भारतीय समाजवादी और आरएसएस में भेद दिखाई देने लग जाता है। गुजरात के साम्प्रदायिक मोदी को स्वीकार कर पाना क्यों नितीश को असंभव लगा? आप कह रहे हैं कि तब भी नितीश ने उनकी सरकार में रेलमंत्री….? भाई क्या अटल की पहचान साम्प्रदायिक थी ? यही कला है या विचार – आप तय कीजिये। राष्ट्रवादी और जातिवादी – मने भारतीय मॉडल के समाजवाद को नितीश ने तब भी स्वीकार किया था और आज भी स्वीकार कर रहा है।
नितीश अकेले नहीं हैं इस राह के राही! जयप्रकाश से लेकर मुलायम तक कौन बचा है ? जॉर्ज फर्नांडिस के साथ नितीश के कदम ताल को आप जो भी नाम दो – मैं उसे समाजवाद का भारतीय मॉडल ही कहूँगा। 
पूँजीवादी आधुनिकता की स्वाभाविक प्रक्रिया में व्यक्ति, वैयक्तिकता, व्यक्तिवाद का जन्म लेना स्वाभाविक है। परन्तु पूँजीवादी आधुनिकता का भारतीय मॉडल जाति, सम्प्रदाय, पुरुषवाद, आदि सामंती संस्कारों को बिना स्वीकार किये संभव है क्या ? जनाब 30% महिला आरक्षण का विरोध ‘परकटी महिलाओं’ के संबोधन से यूँ ही नहीं हो गया था शरद यादव के द्वारा !

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